Hindi Shayari -  Kahin Behtar Hai Teri Ameeri Se Muflisi Meri


कहीं बेहतर है तेरी अमीरी से मुफलिसी मेरी,
चंद सिक्कों की खातिर तूने क्या नहीं खोया है,
माना नहीं है मखमल का बिछौना मेरे पास,
पर तू ये बता कितनी रातें चैन से सोया है।


उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था,
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला,
इक मुसाफिर के सफर जैसी है सब की दुनिया,
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला।


यार तो आइना हुआ करते हैं यारों के लिए,
तेरा चेहरा तो अभी तक है नकाबों वाला,
मुझसे होगी नहीं दुनिया ये तिजारत दिल की,
मैं करूँ क्या कि मेरा जहान है ख्वाबों वाला।